संगीत के द्वारा गहन शांति और सुख:राधेश्याम
पता ही न चला आई. आई. टी. दिल्ली में टेक्सटाइल इंजिनियरींग के अंतर्गत रेशों के संबन्ध में अध्ययन करते करते राधेश्याम जी गुप्ता सितार के तारों में कब ऐसा कम्पन कर बैठे जिसने अद्वितिय मधुर संगीत का रूप ले लिया। १९९१ में आस्ट्रेलिया आने के बाद इन्होने RMIT मेल्बर्न से ’कोम्प्यूटींग’ में M.Tech किया पर रोजी रोटी के अलावा संगीत की दुनिया में आपका आंतरिक झुकाव है वह आपको आई टी व्यवसायिकों की कतार से बिल्कुल अलग खड़ा कर देता है। इतना अलग कि इस वर्ष ’इंडिया इंटरनेशनल फ्रेंडशीप सोसाइटी’ ( IIFS) ने आपको ’ग्लोरी ओफ इंडिया एवार्ड’ से विभूषित किया है। यह पड़ाव है एक लम्बी यात्रा का - जिसमें बालगंधर्व विद्यालय मुंबई से आपने संगीत विशारद की उपाधि प्राप्त की थी तथा संगीत कला केन्द्र आगरा में गुरुदेव प. रघुनाथ जी तेलगाँवकर के सानिध्य में सितार-वादन की शिक्षा पाई।
आपने जब मेलबर्न आ कर देखा कि यहाँ भारतीयों के लिये संगीत और संस्कृति सिखाने वाली कोई संस्था नहीं है तो ’शारदा कला केन्द्र’ की स्थापना की जहाँ पर गायन, सितार,हारमोनियम, की-बोर्ड व तबला आदि सिखाये जाने लगे । फिर तो हर समय भारतीयों के साथ साथ आस्ट्रेलिया के गोरे छात्र भी सीखने आने लगे। सिखाने की धुन में आपको कक्षाओं की सीमा संकुचित दिखने लगी तो www.sharda.org की वेबसाईट के द्वारा मुफ्त में हजारों विद्यार्थियों को शिक्षा देना शुरू किया। आप दिमाग से ’डिपार्टमेंट ओफ जस्टिस’ में ’बिज़नेस एनेलिस्ट’ की भूमिका अदा करते हैं पर दिल युवा पीढ़ी में संस्कृति की पहचान कराने और संगीत की शिक्षा प्रदान के लिये कटिबद्ध है तभी तो आप स्वर और ताल की उन बारीकियों को बखूबी से पढ़ाते हैं जो कि एक सामान्य गायक को संगीतज्ञ बनाती है।
आप कहते हैं “संगीत हमें ईश्वर के करीब खड़ा कर देता है और मस्तिष्क को शांतिमय बनाता है। मैं सोंचता हूँ तनावपूर्ण जीवन जीने वाले व्यक्तियों के लिये संगीत रामबाण दवा है।“ FIMDV याने फेडरेशन ओफ़ म्यूज़िक एंड डांस विक्टोरिया के कोषाध्यक्ष के रूप में आपने बताया है कि “ FIMDV संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रम को दिया गया चन्दा या अनुदान AID याने एसोसियेशन ओफ इंडियाज़ डेवलपमेंट के द्वारा प्रतिकूल-परिस्थितिग्रस्त लोगों को जाता है।“ आपने मेलबर्न में संगीत संध्या16 वर्ष पहले चलाई थी जो आज भी निरंतर चला रहे हैं। इसी तरह साहित्य-संध्या की भी स्थापना कर आठ वर्षों तक चलाई और तब यह कार्यभार उत्सुक कार्यकर्ताओं के कंधों पर सौंप दिया। आपसे कुछ प्रश्नोत्तर :
संगीत के प्रति आपका क्या द्रष्टिकोण है?
संगीत को मैं आत्मबोध, ईश्वर प्राप्ति तथा आत्म शांति का माध्यम मानता हूँ। संगीत के द्वारा गहन शांति और सुख जितना आसानी से मिल जाता है वह किसी दूसरे साधन से नहीं मिलता इसलिये मैं संगीत का विस्तार चाहता हूँ कि विश्व में सबको संगीत द्वारा सुख और शांति मिले।
आपने शिक्षा टेक्स्टाईल तकनीकी में तथा कोम्प्यूटींग के क्षेत्र में पाई है तो आप इसका संगीत से तालमेल कैसे बिठा पाते है?
संगीत मेरा हृदय है और तकनीकी मेरा दिमाग। जीवन में दोनो का तालमेल जरूरी है। केवल एक के होने से पूर्णता नहीं आती। जीवन में धनार्जन भी जरूरी है – अपने परिवार के लिये, बच्चों के लिये। अत: तकनीकी शिक्षा जरूरी हो गई। साथ ही हृदय की सुख शांति भी जरूरी है । दोनो के साथ चलने पर ही जीवन में पूर्णता आती है।
आपको बचपन से संगीत में रूझान के विषय में पता चल गया होगा फिर आपने विज्ञान में शिक्षा पाना क्यों उचित समझा? क्या ’थ्री इडियट’ फिल्म के संदेश की तरह आप समझते हैं कि संगीत में अभिरूचि होने पर भी विज्ञान में शिक्षा पाकर आपने कोई गलती की है?
मैं इसे गलत नहीं मानता। हालाँकि जब मैं संगीत सीखने लगा था तो इसमें मेरी रूचि इतनी बढ़ गई कि सोचा संगीत के अलावा कुछ भी पढ़ने योग्य नहीं है। पर जब समझ में आया कि संगीत के भरोसे जीवनयापन मुश्किल है तो पढ़ना जारी रखा लेकिन बस, संगीत को ज्यादा महत्वपूर्ण समझ कर। पर हुआ यह कि संगीत ने मेरी पढ़ाई में बहुत मदद की। अगर गीत गाने या वाद्ययन्त्र बजाने के बाद पढ़ने जाता तो मस्तिष्क इतना साफ होता था कि सब कुछ जल्दी समझ में आता था। मुझे दोनो एक दूसरे के पूरक लगे।
आपकी बात मुझे वैज्ञानिक तौर पर भी समझ में आती है कि संगीत से दिमाग तनावमुक्त हो जाता है और दूसरा वैज्ञानिक तर्कशक्ति और संगीत की कला मस्तिष्क के अलग अलग भाग में मौजूद होती है। जब संगीत वाला भाग क्रियाशील हो कर थक चुका होता है तब भी तर्कशक्ति वाला हिस्सा तरोताजा होता है - वह बागडोर संभालने के लिये उतावला हो जाता है। आगे आप हमें यह बतायें कि बोलीवुड द्वारा सुगम संगीत का प्रचार प्रवासी भारतीयों में वैसे भी जोरों से हो रहा है। आप यहाँ के बच्चों को शास्त्रीय संगीत सिखाना क्यों आवश्यक समझते है?
बोलिवुड का संगीत भी शास्त्रीय संगीत पर आधारित है क्योंकि शास्त्रीय संगीत तो मूल है। बोलिवुड में जितने भी संगीतकार, गायक या वादक हैं वे शास्त्रीय संगीत में पारंगत हैं। आप ज़ी टीवी या सोनी आदि पर देखिये – सभी परीक्षक स्वर, ताल , गाने की पद्दती तथा गले की हरकत इत्यादि कितना अच्छी तरह से जानते हैं, देखते हैं – यह सब शास्त्रीय संगीत से आता है। बहुत ही बिरले होंगे पिछले जनम से सीख कर आने वाले ।
मैं शास्त्रीय –संगीत को परम आवश्यक मानता हूँ क्योंकि संगीत में सबसे अधिक महत्व ’स्वर’ का होता है और मैं उस पर सबसे अधिक जोर देता हूँ फिर ’ताल’ जरूरी है ये दोनो मिल कर परम आनंद देने वाला संगीत बनाते हैं।
हरिहर झा मेलबोर्न, आस्ट्रेलिया
[email protected]
आपने जब मेलबर्न आ कर देखा कि यहाँ भारतीयों के लिये संगीत और संस्कृति सिखाने वाली कोई संस्था नहीं है तो ’शारदा कला केन्द्र’ की स्थापना की जहाँ पर गायन, सितार,हारमोनियम, की-बोर्ड व तबला आदि सिखाये जाने लगे । फिर तो हर समय भारतीयों के साथ साथ आस्ट्रेलिया के गोरे छात्र भी सीखने आने लगे। सिखाने की धुन में आपको कक्षाओं की सीमा संकुचित दिखने लगी तो www.sharda.org की वेबसाईट के द्वारा मुफ्त में हजारों विद्यार्थियों को शिक्षा देना शुरू किया। आप दिमाग से ’डिपार्टमेंट ओफ जस्टिस’ में ’बिज़नेस एनेलिस्ट’ की भूमिका अदा करते हैं पर दिल युवा पीढ़ी में संस्कृति की पहचान कराने और संगीत की शिक्षा प्रदान के लिये कटिबद्ध है तभी तो आप स्वर और ताल की उन बारीकियों को बखूबी से पढ़ाते हैं जो कि एक सामान्य गायक को संगीतज्ञ बनाती है।
आप कहते हैं “संगीत हमें ईश्वर के करीब खड़ा कर देता है और मस्तिष्क को शांतिमय बनाता है। मैं सोंचता हूँ तनावपूर्ण जीवन जीने वाले व्यक्तियों के लिये संगीत रामबाण दवा है।“ FIMDV याने फेडरेशन ओफ़ म्यूज़िक एंड डांस विक्टोरिया के कोषाध्यक्ष के रूप में आपने बताया है कि “ FIMDV संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रम को दिया गया चन्दा या अनुदान AID याने एसोसियेशन ओफ इंडियाज़ डेवलपमेंट के द्वारा प्रतिकूल-परिस्थितिग्रस्त लोगों को जाता है।“ आपने मेलबर्न में संगीत संध्या16 वर्ष पहले चलाई थी जो आज भी निरंतर चला रहे हैं। इसी तरह साहित्य-संध्या की भी स्थापना कर आठ वर्षों तक चलाई और तब यह कार्यभार उत्सुक कार्यकर्ताओं के कंधों पर सौंप दिया। आपसे कुछ प्रश्नोत्तर :
संगीत के प्रति आपका क्या द्रष्टिकोण है?
संगीत को मैं आत्मबोध, ईश्वर प्राप्ति तथा आत्म शांति का माध्यम मानता हूँ। संगीत के द्वारा गहन शांति और सुख जितना आसानी से मिल जाता है वह किसी दूसरे साधन से नहीं मिलता इसलिये मैं संगीत का विस्तार चाहता हूँ कि विश्व में सबको संगीत द्वारा सुख और शांति मिले।
आपने शिक्षा टेक्स्टाईल तकनीकी में तथा कोम्प्यूटींग के क्षेत्र में पाई है तो आप इसका संगीत से तालमेल कैसे बिठा पाते है?
संगीत मेरा हृदय है और तकनीकी मेरा दिमाग। जीवन में दोनो का तालमेल जरूरी है। केवल एक के होने से पूर्णता नहीं आती। जीवन में धनार्जन भी जरूरी है – अपने परिवार के लिये, बच्चों के लिये। अत: तकनीकी शिक्षा जरूरी हो गई। साथ ही हृदय की सुख शांति भी जरूरी है । दोनो के साथ चलने पर ही जीवन में पूर्णता आती है।
आपको बचपन से संगीत में रूझान के विषय में पता चल गया होगा फिर आपने विज्ञान में शिक्षा पाना क्यों उचित समझा? क्या ’थ्री इडियट’ फिल्म के संदेश की तरह आप समझते हैं कि संगीत में अभिरूचि होने पर भी विज्ञान में शिक्षा पाकर आपने कोई गलती की है?
मैं इसे गलत नहीं मानता। हालाँकि जब मैं संगीत सीखने लगा था तो इसमें मेरी रूचि इतनी बढ़ गई कि सोचा संगीत के अलावा कुछ भी पढ़ने योग्य नहीं है। पर जब समझ में आया कि संगीत के भरोसे जीवनयापन मुश्किल है तो पढ़ना जारी रखा लेकिन बस, संगीत को ज्यादा महत्वपूर्ण समझ कर। पर हुआ यह कि संगीत ने मेरी पढ़ाई में बहुत मदद की। अगर गीत गाने या वाद्ययन्त्र बजाने के बाद पढ़ने जाता तो मस्तिष्क इतना साफ होता था कि सब कुछ जल्दी समझ में आता था। मुझे दोनो एक दूसरे के पूरक लगे।
आपकी बात मुझे वैज्ञानिक तौर पर भी समझ में आती है कि संगीत से दिमाग तनावमुक्त हो जाता है और दूसरा वैज्ञानिक तर्कशक्ति और संगीत की कला मस्तिष्क के अलग अलग भाग में मौजूद होती है। जब संगीत वाला भाग क्रियाशील हो कर थक चुका होता है तब भी तर्कशक्ति वाला हिस्सा तरोताजा होता है - वह बागडोर संभालने के लिये उतावला हो जाता है। आगे आप हमें यह बतायें कि बोलीवुड द्वारा सुगम संगीत का प्रचार प्रवासी भारतीयों में वैसे भी जोरों से हो रहा है। आप यहाँ के बच्चों को शास्त्रीय संगीत सिखाना क्यों आवश्यक समझते है?
बोलिवुड का संगीत भी शास्त्रीय संगीत पर आधारित है क्योंकि शास्त्रीय संगीत तो मूल है। बोलिवुड में जितने भी संगीतकार, गायक या वादक हैं वे शास्त्रीय संगीत में पारंगत हैं। आप ज़ी टीवी या सोनी आदि पर देखिये – सभी परीक्षक स्वर, ताल , गाने की पद्दती तथा गले की हरकत इत्यादि कितना अच्छी तरह से जानते हैं, देखते हैं – यह सब शास्त्रीय संगीत से आता है। बहुत ही बिरले होंगे पिछले जनम से सीख कर आने वाले ।
मैं शास्त्रीय –संगीत को परम आवश्यक मानता हूँ क्योंकि संगीत में सबसे अधिक महत्व ’स्वर’ का होता है और मैं उस पर सबसे अधिक जोर देता हूँ फिर ’ताल’ जरूरी है ये दोनो मिल कर परम आनंद देने वाला संगीत बनाते हैं।
हरिहर झा मेलबोर्न, आस्ट्रेलिया
[email protected]